कभी तुम भी नज़र आओ,
सुबह से शाम तक हम को,
बहुत से लोग मिलते हैं,
निगाहों से गुज़रते हैं,
कोई अंदाज़ तुम जैसा,
कोई हमनाम तुम जैसा,
मगर तुम ही नहीं मिलते,
बहुत बेचैन फिरते हैं,
बड़े बेताब रहते हैं,
दुआ को हाथ उठते हैं,
दुआ में यह ही कहते हैं,
लगी है भीड़ लोगों की,
मगर इस भीड़ में “साक़ी”
कभी तुम भी नज़र आओ,
कभी तुम भी नज़र आओ...।